सीहोर | मानव जीवन के प्रत्येक क्षण में दिन प्रतिदिन हमारा सामना विभिन्न पहलुओं से होता है। कुछ जीवन के घटक जैसे सुख, दु:ख, वत्सल, क्रोध, करुणा, सद्भाव और वीभत्स आदि हमारे ह्रदय को पूर्ण रूप से प्रभावित करते है। इन घटकों के कारण ही हमारा आन्तरिक एवं बाह्य जीवन, मस्तिष्क में उत्पन्न विचार एवं कार्यशैली प्रभावित होते हैं। इन घटकों अथवा जीवन के कुछ विभिन्न महत्वपूर्ण पहलुओं में सम्मिलित हैं “प्रेम” एवं “स्वार्थ”।
“प्रेम के पथ पर चलकर हो, मानवता का विस्तार।
स्वार्थ से मिथ्या जीवन हो, सुख की घटे कतार॥
आदिकाल से लेकर अनंतकाल तक प्रेम वास्तव है, फलीभूत है, सत्य एवं अटल है। जीवन की कसौटी पर बल देने वाला तत्व प्रेम है, जीवन का महत्त्व प्रेम है। मानव, पशु - पक्षी, पेड़-पौधे, पर्यावरण, प्रकृति एवं समस्त संसार एक ही बंधन में बंधे हुए हैं। ईश्वर हो चाहे मानव सभी प्रेम के साक्षी हैं।प्रत्येक सम्बन्ध के नाम में अंतर हो सकता है लेकिन इनमें निहित भाव प्रेम ही है।
हांथों में वो पुष्प सजाए, जिसकी खातिर आती है।
कान्हा का वो प्रेम ही है जो, गोपियाँ रास रचाती है॥
इस प्रसंग में श्री कृष्ण से गोपियों के निस्वार्थ प्रेम को वर्णित किया गया है। ठीक इसी प्रकार प्रेम अनेक रूपों में होता है चाहे वह माँ और संतान का हो, भार्या और आर्य का, भ्राता और भगिनी का या फिर मानव और प्रकृति का। प्रेम की सार्थकता में ही जीवन का आनंद है। जीवन की वास्तविकता में स्वार्थ भी उसी तरह से भागीदार है जिस प्रकार प्रेम। मानवता को परे रखकर स्वयं का कार्य सिद्ध करने की क्रिया या विचार ही स्वार्थ का मूल अर्थ है। स्वार्थ परोपकार का पर्याय है, जिसकी प्रवृत्ति में मनुष्य लोभ, नकारात्मकता और घृणा का शिकार होता है। कहीं न कहीं मानवता पर कलंक के समान व्याप्त यह स्वार्थ दु:खों की असीमित श्रंख्लाओं का एकमात्र कारण है।
“प्रेम विस्तार है और स्वार्थ संकुचन”