हम सुरक्षित तो सुरक्षित हमारा परिवार


भोपाल : वक्त के साथ सम्हल के चलना पड़ता है। जैसे-जैसे आप पर जिम्मेदारी बढ़ती जाती है, वैसे-वैसे आप जिम्मेदार होते जाते हैं। आपको अपनों और अपनी सुरक्षा की चिंता होने लगती है कि मैं नहीं तो मेरे बच्चों का क्या होगा? इसलिये आप खुद अपने आप को सुरक्षित रखने का प्रयास करते रहते हैं और करना भी चाहिये। हम सुरक्षित तो हमारा परिवार सुरक्षित।
हम बात कर रहे हैं, आप सुरक्षित कैसे रहेंगे? आज सड़क पर चलना दूभर हो गया है, लेकिन आप सड़क सुरक्षा नियमों को अपनाकर जिम्मेदार नागरिक बन सकते हैं और अपने आप को सुरक्षित कर अपने परिवार को सुरक्षा दे सकते हैं।
'काल के गाल में समाना'' का सबसे सटीक उदाहरण है सड़क/वाहन दुर्घटना, जो हमेशा असामयिक मृत्यु का कारण बनती है। इसके कई कारण हो सकते हैं, लेकिन सड़क/वाहन दुर्घटना एक ऐसा उदाहरण है, जिसे हम सड़क सुरक्षा के नियमों का पालन कर रोक सकते हैं, लेकिन कई बार अपने परिवार का ख्याल नहीं रखकर सड़क सुरक्षा नियमों की उपेक्षा करते हैं।
वक्त के साथ बदलाव जरूरी है। पहले के समय, न तो इतने वाहन थे और न ही इतने लोग। आज सड़कों पर लोगों से ज्यादा वाहन हैं। इसलिये हमें अपनी सुरक्षा के लिये सड़क सुरक्षा के छोटे-छोटे नियमों का पालन करना आवश्यक होता है। सड़क सुरक्षा के नियमों को धीरे-धीरे भी अपनाना शुरू कर दें तो वे आदत में आ जाते हैं और आप एवं आपका परिवार सुरक्षित हो जाता है।
इसका दूसरा फायदा यह भी होता है कि यातायात पुलिस-जाँच के समय आपका जो समय अनावश्यक व्यर्थ जाता है, वो भी बच सकता है। इसलिये भी सड़क सुरक्षा के नियमों का पालन करना चाहिये। एक बात यह भी है कि सड़क सुरक्षा के नियमों को आपको खुद से अपनाना पड़ेगा, तभी आप सुरक्षित होंगे। यह कोई जोर-जबरदस्ती से अपनाने वाली चीज नहीं है, नहीं तो आप इसे हमेशा बोझ ही समझेंगे।
हम सोच भी नहीं सकते सड़क/वाहन दुर्घटना इतनी भयावह होती है कि हम या हमारे परिजन दुर्घटना के बाद सड़क एवं अस्पताल में जिंदा लाश की तरह हो जाते हैं। कई उदाहरण अखबारों में पढ़ने को मिलते हैं कि माता-पिता ने बेटे की मृत्यु के बाद उसके अंगदान किये। यह दिल को दहलाने वाली खबर होती है। मुझे भी कुछ दिनों पहले अंगदान सम्मान समारोह में जाने का मौका मिला। उस सम्मान समारोह में कोई भी खुशी से सम्मान नहीं ले रहा था, लेकिन वे सबके प्रेरणा-स्त्रोत बने। समारोह में सभी की आँखें नम (गमगीन) थी। ऐसी ही एक खबर पढ़ी थी कि सड़क दुर्घटना में बेटे के सिर में चोट लगने के बाद उसकी मृत्यु हुई। पिता ने उसकी तेरहवीं के दिन लोगों को जागरूक करने के उद्देश्य से हेलमेट का वितरण किया। वे समाज में एक उदाहरण बने, लेकिन दिल पर पत्थर रखकर उन्होंने यह कार्य किया होगा, उन्हें प्रणाम।